इस सप्ताह भारतीय सिनेमा ने अपने सौ स्वर्णिम वर्ष पूरे कर लिये हैं, 1913 में दादा साहब फाल्के ने भारतीय सिनेमा के इतिहास की पहली फिल्म राजा हरिश्चन्द्र प्रस्तुत की थी, शायद उनको भी नहीं पता था कि यह फिल्म भारतीय सिनेमा के लिये मील का पत्थर साबित होगी, यह तो हम जानते ही हैं कि उस समय में फिल्में रंगीन नहीं हुआ करती थी और ना ही आज के बराबर फिल्मों में तकनीकी और कम्प्यूटर का प्रयोग हुआ करता था,
क्या आप जानते हैं?
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How did mughal e azam color – जाने कैसे हुई मुगले आजम रंगीन
उस दौर की फिल्म केवल कहानी और अभिनय के दम पर ही चला करती थी, इसी कारण उस दौर की कुछ फिल्में आज की नई फिल्मों के लिये एक मिसाल हैं, इन्हें आज भी दर्शक देखना पसंद करते हैं। ऐसी ही एक फिल्म है, वर्ष 1960 में रिलीज हुई ऐतिहासिक फिल्म मुगले-ए-आजम। इस फिल्म के मुख्य कलाकार थे दिलीप कुमार और मधुबाला। इसके निर्देशक के आसिफ को यह फिल्म बनाने में 12 सालों का वक्त लगा था तथा उस समय में कुल खर्चा डेढ करोड रूपये आया था। आपको पता है यह पूरी फिल्म ब्लैक एण्ड व्हाइट है तथा इसके कुछ गाने रंगीन थे। इसकी लोकप्रियता को देखते हुए वर्ष 2004 में इसको रंगीन कर पेश किया गया। इसको रंगीन करने का जिम्मा उठाया शापूरजी पैलनजी मिस्त्री ने उनकी ही कंपनी ने फिल्म मुगले-आजम के निर्माण में अहम भूमिका निभाई थी। फिल्म का रंगीन संस्करण जारी करने में भी उनकी कंपनी ने लगभग पांच करोड़ रुपये खर्च किए।
एक फोटो को रंगीन करना बहुत कठिन काम है, तो यहॉ तो पूरी चलती और बोलती फिल्म थी, कैसे किया गया होगा, इस फिल्म को रंगीन, चलिये जानना शुरू करते हैं
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Film Colorization Explain in Hindi – How to Colour a Black And White Movie
एक फिल्म को जब हम पर्दे पर देखते हैं तो 1 सेकेण्ड में हमारी ऑखों के सामने से 24 फ्रेम या फोटो गुजर जाते हैं या सीधी भाषा में कहें तो 24 फोटो बदल जाते हैं, हमारी आखें इस बदलाव को पकड नहीं पाती हैं और हमें फिल्म चलती हुई दिखाई देती है, चलिये अब गणना करते हैं कि 3 घण्टे की फिल्म में कितने फ्रेम या फोटो बनेंगे,1 सेकेण्ड में 24 फ्रेम, 60 सेकेण्ड या 1 मिनट में 1440 फ्रेम, 60 मिनट या 1 घण्टे में 86400 फ्रेम, 3 घण्टे में कुल 259200 फ्रेम हमारी आखों के आगे से गुजर जाते हैं।
अगर इन फ्रेम को रोक कर देखा जाये तो कुछ इस तरह दिखाई देगें
अगर इन फ्रेम को रोक कर देखा जाये तो कुछ इस तरह दिखाई देगें
अगर इन सभी चित्रों को एक नजर में देखा जाये तो यह सब एक जैसे ही दिखाई देते है, लेकिन अगर आप दौड रहे घोडें के पैरों पर नजर डालेगें तो आपको अन्तर समझ में आ जायेगा।
तो इसी प्रकार पुरानी मुगले आजम को कम्प्यूटर तकनीक की सहायता से फ्रेम में बॉटा गया, और फिल्म को कलर करने की शुरूआत की गयी, टैक्नीशियन्स ने स्किन कलर टोन और वेशभूषा के हिसाब से सॉफ्टवेयर की मदद से रंग भरने शुरू किये, हर चित्र/फ्रेम को बडी ही बारीकी से कलर किया गया, फिल्म काफी पुराने प्रिन्ट की थी, इस कारण कहीं कहीं पर धब्बे आदि भी लग गये थे, उन्हें भी साफ किया गया, इसके बाद इन सभी फ्रेमों को एक साथ सॉफ्टवेयर के मदद से 24 फ्रेम प्रति सेकेण्ड की दर से जोडा गया।
यह फिल्म के कुछ द़श्य जो पहले ब्लैक एण्ड व्हाइट थे और कलर होने के बाद ऐसे दिखने लगे
लेकिन अभी काम खत्म नहीं हुआ, इन सभी फ्रेम को साथ में जोडने के बाद इसकी साण्उड कर काम किया गया, उसको डिजिटल रूप दिया गया, और साउण्ड को फिल्म के लगभग 250000 द़श्यों से मिलाया गया और फिर दोबारा से ऐडिट किया गया और आज कल के सिनेमा के हिसाब से ढाला गया, कुल मिलाकर इसका डिजिटलीकरण कर दिया गया। जब यह फिल्म रंगीन होकर तैयार हुई और रिलीज की गयी, तो काफी पसंद की गयी और एक बार फिर इस तकनीकी के सहारे इस बेमिसाल फिल्म ने अपना जादू फिर से कायम किया।