30 जून 2015 को वर्ल्ड क्लॉक में जब 23 बजकर 59 मिनट और 59 सेकंड होंगे तब दुनिया के वक्त में एक नया सेकंड जोड़ दिया जाएगा और इसके बाद 2015 के कुल सेकंड्स 31,536,001 करोड़ हो जाएंगे। लेकिन क्यूं ? ऐसी क्या जरूरत पड गयी और वो भी केवल एक सेकेण्ड जोडने की। आखिर क्या होगा अगर ये एक सेकेण्ड नहीं जोडा गया और तकनीकी दुनिया से इसका क्या लेना देना है। आईये जानते हैं –
वैसे बात तो हम तकनीकी दुनिया की कर रहे है लेकिन इससे पहले थोडा भूगोल भी जान लेते हैं, आपको जानकार आश्चर्य होगा कि पृथ्वी पर जब डायनासोर काल था, तब पृथ्वी अपनी घुरी पर एक चक्कर लेने में सिर्फ 23 घंटे ही लिया करती थी। लेकिन अब पृथ्वी की अपनी घुरी पर एक चक्कर लगाने की रफ्तार धीमी हो रही है। इसका सीधा प्रभाव टाइम यानी समय पर पडता है, पृथ्वी की घूर्णन गति प्रतिदिन सेकेंड के 2000 वें भाग के बराबर धीमी होती जा रही है। जिससे हर 100 साल में करीब 15 सेकंड का अंतर आता है। अगर इस वर्ष लीप सेकेंड नहीं जोड़ा जाता है तो आने वाले 2000 साल में यूनिवर्सल टाइम (UTC) और अपनी धुरी पर पृथ्वी के एक चक्कर में एक घंटे का फर्क आ जाएगा।
धरती की परिक्रमा के अनुरूप अटॉमिक घड़ियों को रखने के लिए अतिरिक्त सेकंड जोड़ने की जरूरत होती है वरना घड़ियां सौर प्रणाली के समय से आगे चली जाएंगी। इस एक एक्स्ट्रा सेकंड को लीप सेकंड कहा जाता है। लीप सेकेंड जोडने की प्रक्रिया 1972 से चल रहीे है। 2015 में यह 26वीं बार होगा जब लीप सेकंड जोड़ा जाएगा। यह लीप सेकेंड 30 जून की रात को जाेडा जायेगा, वैसे तो एक दिन में कुल सेकेण्ड 86,400 होते हैं लेकिन लीप सेकेंड जोडने के बाद इनकी संख्या 86,401 हो जायेगी। इससे 30 जून की रात घड़ी की सुइयां 11 बजकर 59 मिनट पर सीधे 12 नहीं, बल्कि 11:59:60 बजाएंगी।
अापके घरेलू कंप्यूटर पर लीप सेकेंड का कोई असर न हो लेकिन हो सकता है कई सारे कंप्यूटर और वेसाइट सर्वर क्रेश हो जायें। गूगल ने इसका इंतजाम पहले ही लीप स्मीयर तकनीक के माध्यम से कर रखा है। यह तकनीक इस लीप सेकेंड को टाइम में पहले ही मर्ज करके चलती है। जिससे गूगल को कोई भी सेकेंड बढाना नहीं पडेगा।
यह भी जानें –
लीप वर्ष
पृथ्वी को सूर्य की एक परिक्रमा पूरी करने में 365 दिन 5 घंटे 48 मिनट 45.51 सेकेण्ड (लगभग 365 दिन व 6 घंटे) का समय लगता है। सूर्य के चारों ओर पृथ्वी की इस परिक्रमा को पृथ्वी की वार्षिक गति अथवा परिक्रमण कहते हैं।
पृथ्वी को सूर्य की एक परिक्रमा पूरी करने में लगे समय को सौर वर्ष कहा जाता है। प्रत्येक सौर वर्ष, कैलंडर वर्ष से लगभग 6 घंटा बढ़ जाता है। जिसे हर चौथे वर्ष में लीप वर्ष बनाकर समायोजित किया जाता है। लीप वर्ष 366 दिन का होता है। जिसके कारण फ़रवरी माह में 28 दिन के स्थान पर 29 दिन होते हैं।
एटॉमिक टाइम
एटोमिक घडियाँ विभिन्न रेडियो एक्टिव पदार्थों के कम्पन पर आधारित होती हैं और कहा जाता है कि ये सबसे शुद्ध समय की गणना करती हैं और इनमें लगभग 30 मिलियन वर्ष बाद 1 सेकेंड का फर्क आता है, ये विभिन्न पदार्थों पर आधारित हो सकती हैं जैसे- स्ट्रोंटियम, सीज़ियम इत्यादि। स्विटजरलैंड में स्थित एटोमिक घडी सीज़ियम आधारित है जिसमें 30 मिलियन वर्ष में 1 सेकेंड का फर्क आता है।